वक्त के दरबार में राम जी उपाध्याय
फर्जी नियुक्ति का मामला गरमाया
मीरजापुर। आश्चर्य होता है कि अवर अभियंता रामजी उपाध्याय की नियुक्ति फर्जी निकल गई। इस तथाकथित नौकरी के 17 साल बीत गए थे और बड़े जुगाड़ से ठेकेदारों के माध्यम से रामजी उपाध्याय ने नगर पालिका परिषद मीरजापुर में अपनी विशेष तैनाती करा ली थी। डूडा तो उनकी जेब में था। अफवाहों के आधार पर यूपी एग्रो के वे मूल कर्मचारी बताया जाते थे। बहरहाल, अधिशासी अधिकारी के न रहने पर नगर पालिका परिषद के प्रभारी अधिशाषी अधिकारी बना दिए जाते थे। रामजी उपाध्याय मौके पर तो नहीं रहते थे, लेकिन लोगों की ख़ुशी के लिए जादुई तरीके से अपना हेलमेट उतार कर हाज़िर हो जाते थे। नगर पालिका में समय बीतने पर अपने समर्थक कर्मचारियों के साथ "एक साल बेमिसाल" का आयोजन भी किया था। अपने संचालन से सबको मोहित कर दिया था। सभी रामजी उपाध्याय को कौतूहल की दृष्टि से देख रहे थे। लोग रामजी उपाध्याय की पहुँच का लोहा मान रहे थे। सूत्रों की मानें तो उनकी महान शख्सियत के बारे में कई किस्से बताया जाने लगे। गोवंश के संरक्षण का मामला हो अथवा कोई निर्माण हर जगह रामजी उपाध्याय का राज चलता था, लेकिन गोवंश का मामला उनके लिए एक बुरी ख़बर लेकर आया। विश्व हिंदू परिषद से जुड़े हुए संगठनों ने टांडा डैम स्थित गोवंश की बेहतर व्यवस्था के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया। यह आवाज मुख्यमंत्री तक पहुँच गई और मुख्यमंत्री ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से नाराजगी जताते हुए रामजी उपाध्याय समेत मीरजापुर के तीन अधिकारियों को निलंबित कर दिया। यहीं से रामजी उपाध्याय के बुरे दिन शुरू हो गए। इनकी नियुक्ति के संबंध में छानबीन की जाने लगी। बड़े रोचक तथ्य सामने आने लगे। पता चला कि रामजी उपाध्याय की नियुक्ति हवा में है। रामजी उपाध्याय के कौशल को देखते हुए लोग अपनी उंगलियों को दातों में दबाने लगे। मीरजापुर के अधिकारियों पर गाज गिरने के बाद गोवंश की व्यवस्था अचानक बेहतर होने लगी। जिलाधिकारी भी तारीफ करने लगे। वही टीम जरूरत से ज्यादा अच्छा करने लगी, जिनके कारण रामजी उपाध्याय समेत मीरजापुर के तीन अधिकारी निपट गए।
समर चंद्र
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