जब ब्रह्मा जी की रची हुई प्रजा बढ़ने से रूक गई! तब उन्होंने पुन: मैथुनी सृष्टि करने का विचार किया! इसके पहले ईश्वर से नारियों का समुदाय प्रकट नहीं हुआ था! इसलिए तब तक मैथिली सृष्टि नहीं कर सकते थे! तब उन्होंने मन में ऐसे विचार को स्थान दिया जो निश्चित रूप से उनके मनोरथ की सिद्धि में सहायक था! उन्होंने सोचा कि वृद्धि के लिए परमेश्वर से ही पूछना चाहिए! क्योंकि उनकी कृपा के बिना नहीं बढ़ सकते, ऐसा सोचकर विश्वात्मा ब्रह्मा ने तपस्या करने की तैयारी की! तब जो आदि-अनंता लोकभावनी, सुख-संपदा, सुधा-भावना, मनोहरा,निर्गुण इस ससांर शब्द था, सदा ईश्वर के पास रहने वाली जो उनकी परम शक्ति है! उसी से युक्त भगवान त्रिलोचन का अपने हृदय में चिंतन करते हुए! ब्रह्माजी बड़ी भारी तपस्या करने लगे! तपस्या में लगे हुए परमेष्ठी ब्रह्म पर उनके पिता महादेव जी थोड़े ही समय में संतुष्ट हो गये ! तदनंतर अपने निर्वचन से किसी अद्भुत मूर्ति में अष्ट हो भगवान महादेव आधे शरीर से नारी और आधे शरीर से ईश्वर होकर स्वयं ब्रह्मा जी के सामने प्रकट हो गए! उन सभी सब कुछ देने वाले शिव-शक्ति सहित समस्त उपमा के स्वामी, शरणागत वत्सल और सनातन शिव को दंडवत प्रणाम करके ब्रह्माजी उठे और हाथ जोड़कर महादेव जी तथा महादेव पार्वती की स्तुति करने लगे! देव महादेव आपकी जय हो ईश्वर, ईश्वर आपकी जय हो, सर्वश्रेष्ठ शिव आपकी जय हो, संपूर्ण देवताओं के स्वामी शिव शंकर आपकी जय हो! प्रकृति, रुक्मणी, कल्याणमयी उमा आपकी जय हो! प्रकृति की नायिका आपकी जय हो, प्रकृति से दूर रहने वाली देवी आपकी जय हो, प्रकृति सुंदरी आपकी जय हो! हम लोग महामाया और सफल मनोरथ वाले देव आपकी जय हो जय हो! महान लीला और कभी व्यर्थ न जाने वाले महान बल से युक्त परमेश्वर आपकी जय हो! संपूर्ण जगत् की माता उमा आपकी जय हो! संसार की सखी सहायका आपकी जय हो! आपका ऐश्वर्या तथा धाम दोनों सनातन है !आपकी सदा जय हो आपका रूप और अनुचर वर्ग भी ,आपकी बात ही सनातन है! आपने तीनरूपो द्वारा तीनों लोको का निर्माण,पालन और संहार करने वाले देवी आपकी जय हो! जगत के कारण तत्वों का प्रादुर्भाव और विस्तार आपकी कृपा दृष्टि के अधीन है! प्रलय काल में आप की उपेक्षा युक्त कटाक्ष पूर्ण दृष्टि से जो भयानक आग प्रकट होती है उसके द्वारा सारा भौतिक जगत भष्म हो जाता है! आपके रूप का सम्मान देवता आदि के लिए भी असंभव है! आप आत्म तत्व के सूक्ष्म ज्ञान से प्रकाशित होती है! आपने स्थूल आत्मशक्ति से चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है!विश्व के तत्वों का समुदाय अनेक और एक रूप में आपके ही आधार पर स्थित है! आपके श्रेष्ठ सेवकों का समूह बड़े-बड़े असुरों के मस्तक पर पांव रखता है! शरणागत की रक्षा करने में समर्थ परमेश्वरी संसार रूपी वृक्ष के उगने वाले अंकुरओं का उन्मूलन करने वाली उमा, प्रादेशिक ऐश्वर्या वीर्य और शौर्य का विस्तार करने वाले देव विमान देव ने अपने वैभव से दूसरे के वैभव को तिरस्कृत कर दिया है! पाश्चात्य रूप पुरुषार्थ के प्रयोग द्वारा परम आनंद में अमृत की प्राप्ति करने वाले परमेश्वर आपकी जय हो! विविध पुरुषार्थ के विज्ञान रूप अमृत से परिपूर्ण रूप परमेश्वरी अत्यंत भयानक रोग को दूर करने वाले वेद शिरोमणि अनादि कर्म फल एवं अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने वाली चंडीका रूप में सिरपुर का विनाश करने के लिए काल अग्नि समरूप महादेव त्रिपुर भैरवी आपकी जय हो तीनों गुणों से मुक्त महेश्वर आपकी जय हो!
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