अब मध्यप्रदेश में सिद्धारमैया की तलाश।
अशोक गहलोत की वजह से राजस्थान में फिलहाल ऑपरेशन नहीं।
सरकार गिराने का जो फार्मूला कर्नाटक में अपनाया गया वहीं फार्मूला अब मध्यप्रदेश में अपनाया जा सकता है। कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन की सरकार को गिराने में भाजपा ने सीधा दखल नहीं दिया। सरकार से जुड़े किसी भी विधायक को भाजपा में शामिल नहीं किया। कर्नाटक में भाजपा ने पूर्व सीएम और कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व से नाराज चल रहे सिद्धारमैया पर डोरे डाले। इशारा मिलते ही कांग्रेस के 13 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। तीन जेडीएस के विधायको को मिलाकर इस्तीफा देने वालों की संख्या 16 तक पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया कि इस्तीफा देने वाले 16 विधायक मतदान के समय विधानसभा में उपस्थित रहने और न रहने के लिए स्वतंत्र हैं। यही वजह रही कि 23 जुलाई को विधानसभा में मतदान हुआ, तो कुमार स्वामी की सरकार के समर्थन में 99 वोट तथा विपक्ष में 105 वोट पड़े । यानि कांग्रेस जेडीएस को बहुमत होते हुए भी हार मिली, जबकि बहुमत न होने पर भी भाजपा की जीत हुई। मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार का बहुत किनारे पर है। 230 सदस्यों में से 114 कांग्रेस के हैं, जबकि 109 भाजपा के हैं। चार निर्दलीय एक एसपी तथा दो बसपा के हैं। निर्दलीय विधायकों ने कमलनाथ सरकार को समर्थन दे रखा है, इसलिए कांग्रेस की सरकार टिकी हुई है। कर्नाटक में तो कांग्रेस के 13 विधायकों ने एक साथ इस्तीफा दिया था। लेकिन यदि मध्यप्रदेश में पांच छह विधायक भी इस्तीफा दे दें तो विधानसभा में भाजपा की जीत हो जाएगी। बसपा के विधायकों का समर्थन कोई मायने नहीं रखता है क्योंकि मायावती के दबाव के बाद भी कर्नाटक में बसपा के तीन विधायक सदन में अनुपस्थित रहे। बसपा के विधायक तो सभी जगह लुढ़कने लोटे की तरह हैं। यह बात मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कमलनाथ को भी पता है। कर्नाटक के ऑपरेशन के बाद मधयप्रदेश में भी ऑपरेशन की तैयारियां हो सकती है इस बात का आभास कमलनाथ को भी है। इसलिए कमलनाथ ने कहा कि उन्हें कुमार स्वामी न समझा जाए। कमल नाथ कुछ भी कहें लेकिन भाजपा को तो मध्यप्रदेश में सिद्धारमैया की तलाश है। यदि सिद्धरमैया मिल जाए तो मध्यप्रदेश के कई कांग्रेसी विधायक मुम्बई के किसी पांच सितारा होटल में मौज मस्ती करते नजर आएंगे। जैसे सुसाइड बम का कोई तोड़ नहीं है उसी प्रकार राजनीति में विधायकों के इस्तीफे का कोई तोड़ नहीं है। कमलनाथ यह भी समझ लें कि राजनीति में कर्नाटक के बीएस येड्डियूरप्पा से भी मजबूत स्थिति शिवराज सिंह चौहान की है।
राजस्थान में फिलहाल ऑपरेशन नहीं:
जानकार सूत्रोंके अनुसार राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को गिराने का फिलहाल कोई इरादा नहीं है। मध्यप्रदेश में तो मुश्किल से पांच सात विधायकों से ही सरकार को खतरा हो जाएगा, लेकिन राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा विधायकों की संख्या में अंतर काफी है। 200 सदस्यों वाली विधानसभा में 100 विधायक कांग्रेस के हैं, जबकि भाजपा विधायकों की संख्या 72 है। गहलोत सरकार के 12 निर्दलीय और 5 बसपा के विधायकों का भी खुला समर्थन है। वैसे ये 18 विधायक किधर भी आ जा सकते हैं। फिलहाल कांग्रेस की सरकार है तो कांग्रेस के साथ हैं। चूंकि अशोक गहलोत पुराने राजनेता है और तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। गहलोत को अल्पमत की सरकार चलाने का भी अनुभव हैं। गहलोत की वजह से ही राजस्थान में फिलहाल कोई ऑपरेशन शुरू नहीं किया जाएगा। यदि गहलोत की जगह और कोई मुख्यमंत्री होता तो राजस्थान में सिद्धरमैया को तैयार कर लिया जाता। जब कर्नाटक में बोटिंग के समय सरकार से जुड़े 20 विधयक अनुपस्थित रह सकते हैं तो फिर राजस्थान में क्यों नहीं? हाल के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 185 विधानसभा क्षेत्रों में जीत मिली है। कांग्रेस सभी 25 सीटों पर हारी है।
एस.पी.मित्तल
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