नारद ने पूछा, भगवन! संध्या ने कैसे, किस लिए और कहां तप किया? किस प्रकार शरीर त्यागकर वह मेधातिथि की पुत्री हुई! ब्रह्मा ,विष्णु और शिव इन तीनों देवताओं के बताए हुए श्रेष्ठ व्रतधारी महात्मा वशिष्ठ को उसने किस तरह अपना पति बनाया? पितामह मैं यह सब में विस्तार के साथ सुनना चाहता हूं! अरुंधति के इस कोतुहल पूर्ण चरित्र का आप यथार्थ रूप से वर्णन कीजिए ! ब्रह्मा जी ने कहा, मुने! संध्या के मन में एक बार सकाम भाव आ गया था! इसलिए उस साध्वी ने यह निश्चय किया कि वैदिक मार्ग के अनुसार मै अग्नि में अपने इस शरीर की आहुति दे दूंगी! आज से इस भूतल पर कोई भी देहधारी उत्पन्न होते ही काम भाव से युक्त नहीं होगा! इसके लिए मैं कठोर तपस्या करके मर्यादा स्थापित करूंगी,तरुण अवस्था से पूर्व किसी पर भी काम का प्रभाव नहीं पड़ेगा, ऐसी सीमा निर्धारित करूंगी! इसके बाद इस जीवन को त्याग दूंगी! मन ही मन ऐसा विचार करके संध्या चंद्रभाग नामक उस श्रेष्ठ पर्वत पर चली गई, जहां से चंद्रभागा नदी का प्रादुर्भाव हुआ है! मन में तपस्या का दृढ़ निश्चय ले संध्या उस श्रेष्ठ पर्वत पर गई! मैंने अपने समीप बैठे हुए वेदवेदांग के पारंगत विद्वान सर्वज्ञ जीतात्मा एवं ज्ञान योगी पुत्र वशिष्ठ ! संध्या तपस्या की अभिलाषा से चंद्रभाग नामक पर्वत पर गई है तुम जाओ और उसे विधि पूर्वक दिक्षा दो! तपस्या के भाव को नहीं जानती है इसलिए जिस तरह तुम्हारे यथोचित उपदेश से उसे अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हो सके, वैसा प्रयत्न करो! नारद! मैंने दया पूर्वक जब वशिष्ठ को इस प्रकार आज्ञा दी, तब वे जो आज्ञा पाकर एक तेजस्वी ब्रह्मचारी के रूप में संध्या के पास गये! चंद्र पर्वत पर एक सरोवर है जो संसार के सूचित गुणों से परिपूर्ण है ! मानसरोवर के समान शोभा पाता है! वशिष्ठ ने सरोवर को देखा और उसके तट पर बैठी हुई संध्या पर भी दृष्टिपात किया! कमलो से प्रकाशित होने वाला वह सरोवर संध्या से उपलक्षित हो उसी तरह सुशोभित हो रहा था! जैसे प्रदोष काल में उदित हुए चंद्रमा और नक्षत्रों से युक्त आकाश शोभा पाता है! सुंदर भाव वाली संध्या को वहां बैठी देख ,मुनि ने कोतुहल पूर्वक उस बृल्लोहित नाम वाले सरोवर को अच्छी तरह देखा! उसी प्रकार पर्वत के शिखर से दक्षिण समुद्र की ओर जाती हुई चंद्रभागा नदी का भी उन्होंने दर्शन किया! जैसे गंगा हिमालय से निकलकर समुद्र की ओर जाती है! उसी प्रकार चंद्रभाग के पश्चिम से करवा भेदन करके वह नदी समुद्र की ओर जा रही थी! उस चंद्रभाग पर्वत पर बृल्लोहित सरोवर के किनारे बैठी हुई संध्या को देखकर वशिष्ठ ने आदर पूर्वक पूछा!
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