कपासीवर्षी मेघों में उत्पन्न होती है। इन मेघों में अत्यंत प्रबल ऊर्ध्वगामी पवनधाराएँ चलती हैं, जो लगभग ४०,००० फुट की ऊँचाई तक पहुँचती हैं। इनमें कुछ ऐसी क्रियाएँ होती हैं जिनके कारण इनमें विद्युत् आवेशों की उत्पत्ति तथा वियोजन होता रहता है।
इन क्रियाओं के स्पष्टीकरण के लिए विल्सन, सिंपसन, सक्रेज आदि ने अपने सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं, जो परस्पर विरोधी जान पड़ते हैं, किंतु इतना तो सभी बतलाते हैं कि तड़ित की जननप्रक्रिया मेघों में होती है और इसके लिये उन मेघों में विद्यमान जलसीकर, अथवा हिमकण आदि अवक्षेपण, ही उत्तरदायी होते हैं। बादलों में विद्युद्वितरण के संबंध में भी सभी एकमत हैं कि इनके ऊपरी स्तर धनाविष्ट तथा मध्य और निम्नस्तर ऋणाविष्टि होतें हैं। इन आवेशों का विभाजन मेघों के अंदर शून्य डिग्री सें० तापवाले स्तरों के भी काफी ऊपर होता है। इससे यह निष्कर्ष सहज ही प्राप्त होता है कि आवेशविभाजन मेघों में बननेवाले हिमकणों तथा ऊर्ध्वगामी पवनधाराओं से ही होता है, जल की बूँदों से नहीं। कभी-कभी निम्न स्तर में भी कहीं-कहीं धनावेशों का एक केंद्र सा बन जाता है।
बादलों के निम्न स्तरों पर ऋणवेश उत्पन्न हो जाने के कारण नीचे पृथ्वी के तल पर प्रेरण द्वारा धनावेश उत्पन्न हो जाते हैं। बादलों के आगे बढ़ने के साथ ही पृथ्वी पर के ये धनावेश भी ठीक उसी प्रकार आगे बढ़ते जाते हैं। ऋणावेशों के द्वारा आकर्षित होकर भूतल के धनावेश पृथ्वी पर खड़ी सुचालक या अर्धचालक वस्तुओं पर ऊपर तक चढ़ जाते हैं। इस विधि से जब मेघों का विद्युतीकरण इस सीमा तक पहुँच जाता है कि पड़ोसी आवेशकेंद्रों के बीच विभव प्रवणता विभंग मान तक पहुँच जाती है, तब विद्युत् का विसर्जन दीर्घ स्फुलिंग के रूप में होता है। इसे तड़ित कहते हैं। पृथ्वी की ओर आनेवाली तड़ित कई क्रमों में होकर पहुँचती है। बादलों से इलेक्ट्रानों का एक हिल्लोल १ माइक्रो सेकंड (1x10E-६ सेकंड) में ५० मीटर नीचे आता है और रुक जाता है। लगभग ५० मा० से० के पश्चात् दूसरा क्रम आरंभ होता है और इसी प्रकार कई क्रमों में होकर अंत में यह तरंग पृथ्वी तक पहुँचती है। इसे प्रमुख आघात कहते हैं। अपने उद्गमस्थल से पृथ्वी तक पहुँचने में इसे कुल ०.००२ सेकंड तक का समय लगता है।
उपर्युक्त तथ्य शॉनलैंड तथा उनके सहयोगियों द्वारा अत्यंत सुग्राही कैमरे की सहायता से लिए गए फोटो चित्र से प्रकट हुए थे। उसी फोटो पट्टिका पर यह भी दिखलाई पड़ा कि प्रमुख क्रम के पृथ्वी पर पहुँचने के क्षण ही एक अत्यंत तीक्षण ज्योति पृथ्वी से मेघों की ओर उन्हीं क्रमों में होकर गई जिनसे होकर प्रमुख क्रम आया था। इसे प्रतिगामी आपात कहते हैं। जहाँ प्रमुख क्रम का औसत वेग १०५ मीटर प्रति सेकंड होता है वहीं प्रतिगामी आधात का वेग १०७ मीटर प्रति सेकंड होता है, क्योंकि उसका मार्ग पहले से ही आयनित होने के कारण प्रशस्त रहता है।उपर्युक्त प्रमुख और प्रतिगामी आघातों के बाद भी कई आघात क्रमश:- नीचे और ऊपर की ओर आते-जाते दिखलाई पड़ते हैं। ये द्वितीयक आघात कहलाते हैं। नीचे आनेवाले ये द्वितीयक आघत प्रमुख आघात की भाँति क्रमों में नहीं आते।
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