बुधवार, 19 जून 2019

वसुंधरा राजे अब हो गई है अलग-थलग


वसुंधरा राजे की अब दिल्ली में पैरवी करने वाला कोई नहीं।
इसलिए है अब अलग थलग। जैसा बोओगे वैसा काटोगे।

 जयपुर ! राजस्थान में भाजपा की राजनीति में तेजी से बदलाव हो रहा है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को उठाना पड़ रहा है। बदली हुई परिस्थितियों में अब दिल्ली में राजे की पैरवी करने वाला कोई नहीं है। एक ओर जहां राजे विरोधियों को दिल्ली में महत्वपूर्ण पद मिल रहे हैं, वहीं राजे को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है। लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे के बगैर सभी 25 सीटों पर जीत दर्ज करने से उत्साहित राष्ट्रीय नेतृत्व अब किसी एक नेता के भरोसे रहने के बजाए सामूहिक नेतृत्व पर भरोसा कर रहा है। राष्ट्रीय नेतृत्व ने अब राजस्थान की राजनीति में कई नेताओं का स्तर मुख्यमंत्री पद से ऊपर कर दिया है। चाहे गजेन्द्र सिंह शेखावत हो या फिर ओम बिड़ला। एक वर्ष पहले तक राजस्थान में भाजपा पूरी तरह वसुंधरा राजे पर निर्भर थी, राजे के कहने से केन्द्र में मंत्री बनाए जाते थे, लेकिन दिसम्बर 2018 में विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार का कारण भी राजे ही बनीं। यह कहा जा सकता है कि प्रदेश में राजे की वजह से भाजपा को अपनी सरकार गवानी पड़ी। लेकिन लोकसभा चुनाव के परिणाम बताते हैं कि प्रदेश की जनता का भरोसा नरेन्द्र मोदी और भाजपा में है। असल में राजे ने प्रदेश की राजनीति में जैसा बोया, अब वैसा ही काटना पड़ रहा है। राजनीति के जानकार जानते हैं कि भैरोसिंह शेखावत ही राजे को प्रदेश की राजनीति में लाए थे। बाद में शेखावत को ही राजे के खिलाफ मोर्चा खोलना पड़ा। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शेखावत प्रदेशभर में सभाएं की तब राजे ही मुख्यमंत्री थीं। यानि राजे ने शेखावत जैसे कद्दावर नेता को भी नहीं बख्शा। आज वो ही राजे प्रदेश राजनीति में अलग थलग हैं। तीन बार के सांसद बेटे दुष्यंत सिंह को केन्द्र में राज्यमंत्री बनवाने की स्थिति में भी नहीं है। दो बार के सांसद गजेन्द्र सिंह शेखावत और ओम बिड़ला क्रमश: केन्द्रीय मंत्री और लोकसभा के अध्यक्ष बन गए हैं। असल में राजे ने मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए नकारात्मक राजनीति की। अपने परिवार की महारानी की छवि को मुख्यमंत्री पद पर भी बनाए रखा। राजे यह भूल गईं कि मुख्यमंत्री का पद जनता ने दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि राजस्थान में अब भाजपा राजे के चंगुल से निकल कर आम कार्यकर्ता के हाथ में आ गई है। जो राजे स्वयं को ही भाजपा मानने लगी थी, उन्हें अपनी ताकत का अंदाजा हो गया। अब देखना है कि क्या एक विधायक पद के तौर पर वसुंधरा राजे विधानसभा में जाती हैं या नहीं। अभी तो भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के पद पर भी चौंकाने वाली नियुक्ति होनी है। जहां तक मौजूदा अध्यक्ष मदनलाल सैनी का सवाल है तो राष्ट्रीय नेतृत्व का भरोसा सैनी पर बना हुआ है। राज्यसभा के सांसद सैनी को केन्द्र में मंत्री बना कर उपकृत किया जा सकता है। जानकारों की माने तो राजे के समक्ष राज्यपाल पद का प्रस्ताव रखा जा सकता है।
एस.पी.मित्तल!


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