मासिक चक्र के दिनों में कमजोरी न आए, इसलिए पांच हजार महिला श्रमिकों के गर्भाशय निकाले।
बिहार में चमकी बुखबार से अब तक 150 बच्चों की मौत।
आखिर हम किधर जा रहे हैं?
नई दिल्ली ! 20 जून को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद के दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित किया। अपने संबोधन में केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की उपलब्धियों का बखान करने में महामहिम राष्ट्रपति ने कोई कसर नहीं छोड़ी। मोदी सरकार ने अच्छा कार्य किया, इसलिए तो देश की जनता ने दोबारा चुना है। हम चन्द्रमा पर जा रहे हैं और हमारे पास अंतरिक्ष में दुश्मन के सैन्य सैटेलाइट को ध्वस्त करने की क्षमता है। हम अमरीका जैसे ताकतवर देश के सैटेलाइट अंतरिक्ष में स्थापित करते हैं। पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है। आने वाले पांच वर्षों में तो भारत की उपलब्धियां आसमान की ऊंचाइयों को छूएंगी। इतनी उपलब्धियों के बीच ही दो ऐसी खबरें हैं जो मानवता को झकझोर देती हैं। मीडिया खबरों में कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र के मराठवाडा के बीड़ जिले में गन्ने के खेतों पर काम करने वाले पांच हजार महिला श्रमिकों के गर्भाशय निकाल दिए गए हैं। गर्भाशय इसलिए निकाले गए, ताकि मासिक चक्र के तीन चार दिनों में शरीर में कमजोर नहीं आए। शरीर में कमजोरी की वजह से महिला श्रमिक काम कम करती हैं, जिससे ठेकेदार को नुकसान होता है। जब ठेकेदार का नुकसान होता है कि वह महिला श्रमिक की मजदूरी की राशि में से कटौती करता है। यानि निर्दयी ठेकेदार तीस दिन में तीन दिन भी कम काम को बर्दाश्त नहीं कर सकता। जब महिला के शरीर में गर्भाशय ही नहीं रहेगा तो फिर मासिक चक्र का झंझंट भी नहीं रहेगा। यानि न बांस होगा और न बांसूरी बजेगी। इस खबर को पढऩे से ही शरीर कांप जाता है। भेदभाव देखिए सरकारी दफ्तरों में काम करने वाली महिलाओं को बच्चे के जन्म पर नौ माह तक का मातृत्व अवकाश मिलता है और दूसरी ओर गन्ना श्रमिकों के मासिक चक्र से मुक्ति पाने के लिए गर्भाशय निकाले जा रहे हैं। शर्मनाक बात तो यह है कि गर्भाशय निकालने का कार्य निजी अस्पतालों में हुआ है। क्या ठेकेदार और अस्पताल के मालिकों चिकित्सकों को फांसी नहीं होनी चाहिए? गर्भाशय निकालने का आरोप किसी विपक्षी दल ने नहीं बल्कि महाराष्ट्र और केन्द्र में भाजपा की सरकार को समर्थन देने वाली शिवसेना ने लगाया है। महाराष्ट्र सरकार ने अब जांच कराने की बात कही है। जांच के क्या परिणाम होंगे, सबको पता है।
चमकी बुखार:
बिहार में भी भाजपा और जेडीयू के गठबंधन वाली सरकार चल रही है। भीषण गर्मी से उत्पन्न चमकी खुबार से अब तक बिहार में लगभग 150 बच्चों की मौत हो गई है। सबसे ज्यदा मौते मुजफ्फपुर के सरकारी अस्पताल में हुई है। यह माना कि चमकी बुखार मौसमी है, लेकिन सवाल उठता है कि जो बच्चे अस्पताल आ गए उनका इलाज क्यों नहीं हुआ? सरकारी अस्पताल में बच्चों की मौत की जिम्मेदारी पूरी तरह सरकार की है। आज अस्पताल के एक पलंग पर दो बच्चे लेटे हैं। अस्पतालों में चिकित्सा कर्मियों की टीम के साथ-साथ दवाईयों का भी अभाव है। सीएम नीतिश कुमार और डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी खामोश हैं। जिस देश में चमकी बुखार से दम तोड़ते बच्चों को दवाईयां तक नहीं मिल रही है उस देश में सरकार की उपलब्धियां क्या मायने रखती है?
एस.पी.मित्तल
गुरुवार, 20 जून 2019
शोषित महिला श्रमिकों के गर्भाशय निकाले
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