मनुष्य जीवन को ईश्वरमय शांतिमय निरोग बनाने वाले योग के महत्व पर विशेष
दुनिया भर मे योग दिवस बहुत धूमधाम से मनाया गया और इस अवसर पर दुनिया के हर कोने में योग शिविरों का आयोजन करके योगाभ्यास किया गया। सभी जानते हैं कि आज से 4 साल पहले प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर पूरी दुनिया में योग को जीवन का महत्वपूर्ण अंग मानकर इसे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था और इसी फैसले के तहत कल पांचवा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस संसार भर में मनाया गया है। योग को भले ही मनुष्य के शरीर को विभिन्न बीमारियों से बचाने के लिए महत्वपूर्ण मानकर इसे प्राथमिकता दी जा रही हो लेकिन योग मात्र मनुष्य की बीमारियों के निदान का माध्यम ही नही है बल्कि योग का एक व्यापक महत्व है जिसे आदिकाल से मान्यता दी गई है। सृष्टि की रचना के समय से ही योग की अपनी अलग पहचान एवं उपयोगिता रही है। भगवान भोलेनाथ एवं भगवान श्री कृष्ण को इस सृष्टि का प्रथम योगेश्वर माना गया है।यह कहना गलत न होगा कि सृष्टि की रचना ही योग के साथ हुई है यही कारण है कि मनुष्य की दिनचर्या को पैदाइशी योग से जोड़ दिया गया है। मनुष्य सुबह से शाम तक जो भी कार्य करता है उसमें अधिकांश कार्य योग से जुड़े होते हैं और अगर यह कहा जाए कि इस सृष्टि की रचना ही योग की बदौलत हुयी है तो गलत नहीं होगा। सृष्टि के विस्तार में भी योग की महत्वपूर्ण भूमिका रही जो आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। सृष्टि के विस्तार को योग का प्रतिफल कहा जा सकता है क्योंकि योग के बल पर ही ब्रह्मा विष्णु महेश ही नहीं जगत जननी का प्रादुर्भाव ईश्वरीय शक्ति से हुआ है इसलिए योग का दायरा असीमित है जिसे सीमित करके देखना उचित नहीं होगा। योग ही है जो आत्मा को परमात्मा का मिलन कराने में एवं मनुष्य जीवन सार्थक बनाने में सक्षम है। यही कारण है कि चाहे संत हो चाहे महात्मा हो चाहे साक्षात ब्रह्मा विष्णु महेश हो सभी योग से बंधे हुए हैं। योग से सिर्फ मनुष्य के शरीर को ही स्वस्थ नहीं रखा जा सकता है बल्कि मन मस्तिष्क को भी स्वस्थ रखकर उसे सदमार्ग की तरफ अग्रेषित किया जा सकता है। बिना योग के न तो ज्योति स्वरूप निराकार एवं शरीर धारी साकार स्वरूप ईश्वर का मिलन एवं दर्शन नहीं किया जा सकता है। बिना योग के ध्यान संभव नहीं है इसलिए ध्यान को लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए योग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। योग के द्वारा ही अशांत मन को शांत करके शांति की तरफ अग्रसर किया जा सकता है। योग मात्र व्यायाम एवं शारीरिक चिकित्सा ही नहीं बल्कि योग मनुष्य योनि को सफल बनाने का एकमात्र साधन भी है। आदिकाल में योग एवं आयुर्वेद ही मनुष्य जीवन के संरक्षक रहे हैं और समय के साथ ही दोनों महत्वहीन हो गए थे जिसके परिणाम आज धरती पर मनुष्यों को भुगतना पड़ रहा है। हमारी आधुनिक चिकित्सा पद्धति मनुष्य के लिए वरदान कम प्राणघातक अधिक बन रही है और कहते हैं कि अंग्रेजी दवा क्षणिक राहत तो देती है किंतु स्थाई निदान नहीं देती है बल्कि तरह तरह की बीमारियों को पैदा करने वाली फायदेमंद कम एवं नुकसानदेह ज्यादा साबित हो रही है। यही कारण है कि आज दुनिया भर में फिर से योग एवं आयुर्वेद का महत्व बढ़ता जा रहा है और दुनिया इसकी कायल होती जा रही है। योग किसी पार्टी अथवा मजहब से नहीं बल्कि मनुष्य जीवन से जुड़ा हुआ होता है इसे मजहब दल से जोड़ना कतई उचित नहीं है।योगा ही ईश्वर की पूजा एवं अल्लाह की नमाज को लक्ष्य प्रदान करने वाला होता है।यही कारण है कि कल योग दिवस के अवसर पर हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई सभी ने बढ़चढ़कर शिरकत की है तथा महिला पुरूष एवं बच्चे बूढे का भेद समाप्त हो गया है।
भोलानाथ मिश्र
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