सोमवार, 17 जून 2019

बंगाल सरकार की भूमिका


बंगाल के जूनियर डाक्टरों की हड़ताल के समर्थन देश व्यापी हड़ताल और जनता को स्वास्थ्य सुरक्षा देने के संवैधानिक डोर से बंधी पश्चिम बंगाल की सरकार की भूमिका पर विशेष

लोकतंत्र में प्रजा यानी जनता जनार्दन के हितों को सर्वोच्च माना गया है जिस कार्य व्यवहार से देश या प्रदेशवासियों का अहित होता हो अथवा जान मुसीबत में पड़ती हो उसे करने का अधिकार प्रजातांत्रिक व्यवस्था के तहत जनता द्वारा चुनी गई सरकार को नहीं होता है। इतना ही नहीं लोकतंत्र में गठित सरकार का परम दायित्व होता है कि वह अपने सरकारी तंत्र से जुड़े लोकसेवकों के साथ ही अपने मतदाता भगवान के स्वास्थ्य शिक्षा न्याय एवं विकास के साथ ही सुरक्षा प्रदान करें।लोकतांत्रिक व्यवस्था में आमजनता द्वारा चुनी गई सरकार और उसके लोकसेवक ही अगर जनता की जान के दुश्मन बनने का सबब बन जाए तो इससे बड़ा दुर्भाग्य लोकतंत्र के लिए और भला क्या हो सकता है? इस समय देश के अधिकांश राज्यों के जूनियर डॉक्टर बंगाली हड़ताली डाक्टर साथियों के समर्थन में हड़ताल पर चल रहे हैं और आज देश व्यापी हड़ताल की जा रही है। डॉक्टरों के हड़ताल पर जाने की शुरुआत इस बार बहुचर्चित पश्चिमी बंगाल से हुई है और वहां पर अबतक सैकड़ों जूनियर डॉक्टर अपने पद से इस्तीफा भी दे चुके हैं। डॉक्टरों की हड़ताल की शुरुआत गत दिनों वहाँ पर डाक्टरों पर हमले के बाद हुयी है। मारपीट हमला करने का आरोप वहाँ की ममता बनर्जी की अगुवाई वाली उनकी पार्टी के कार्य कर्ताओं पर लगाया जा रहा है। घटना के बाद मुख्यमंत्री की टिप्पणी एवं रवैये के साथ सुरक्षा प्रदान करने की बात को लेकर डाक्टर हड़ताल पर चले गये हैं। वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस गंभीर संकट को समाप्त कर बाधित स्वास्थ्य सेवाएं बहाल कराने की जगह इसे राजनीतिक परिदृश्य से प्रेरित बताकर इस हड़ताल को भाजपा समर्थित करार देकर आग में घी जैसा डाल रही हैं। सुरक्षा जैसी महत्वपूर्ण मांग को लेकर बगावत पर आमादा देश के विभिन्न राज्यों के विभिन्न अस्पतालों के जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर हैं। बंगाल सरकार एवं जूनियर डाक्टरों के बीच चल रही अहम की लड़ाई सीधे आमजनता की जान खतरे में डाल रही है और स्थिति-"लड़े दो साड़ कचरि गई बूढ़ा" वाली हो गयी है।बंगाल के साथ देश के अन्य हड़ताल प्रभावित राज्यों में हड़ताल से हाहाकार मची है और हजारों लोगों की जान संकट में है। हड़ताल की जन्मदाता पश्चिम बंगाल की संवैधानिक सरकार अपने उत्तरदायित्वों को राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते अनदेखा कर इसे पूरे देश में फैला रही हैं जिसे कतई उचित नहीं कहा जा सकता है।हड़ताली डाक्टरों की मांग भले ही शतप्रतिशत सही हो लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह भगवान के बाद दूसरे भगवान माने जाते हैं और उनके कर्तव्यों से जरा सा भी विमुख होना किसी की मौत का कारण बन सकता है। सुरक्षा की मांग को लेकर शुरू की गई हड़ताल धीरे धीरे जनविरोधी एवं जानघातक होती जा रही है। भले ही जूनियर डाक्टरों के साथ अन्याय हो रहा हो लेकिन उनके हड़ताल पर जाने से इस देश की जनता की जान खतरे में पड़ गई है। मुख्यमंत्री और डॉक्टरों के बीच चल रही अहम की लड़ाई जनता के लिए खतरा बनती जा रही है और कई दिन बीत जाने के बावजूद भी मुख्यमंत्री द्वारा उन्हें सुरक्षा का वादा देकर तथा भूल चूक गलती माफ कहकर जनता के हित में हड़ताली डाक्टरों से वार्ता करके हड़ताल खत्म न करवाना आमजन की जान माल से जानबूझकर खिलवाड़ करने जैसा जघन्य अपराध है।सभी जानते हैं कि देश में भले ही लोकसभा चुनाव संपन्न हो गए हो और चुनावी सरगर्मियां शांत हो गई हूं लेकिन पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव शुरू होने से पहले शुरू हुई राजनीतिक सरगर्मियां चुनाव परिणाम आ जाने के बावजूद आज तक जारी हैं और सत्ताधारी टीएमसी एवं भाजपा के बीच राजनैतिक गतिविधियों के साथ ही वहां पर हिंसा मारपीट जंगलराज जैसा दृश्य बना हुआ है और वहां की मुख्यमंत्री कानून का राज कायम करने में जैसे असफल साबित हो रही हैं। अगर पश्चिम बंगाल में डाक्टरों की सुरक्षा देने जैसी मांगे मानकर मामला रफादफा कर दिया गया होता तो शायद जूनियर डाक्टरों की हड़ताल बंगाल के बाहर नही फैलती।अगर कहा जाय तो गलत नही होगा कि चुनावी राजनैतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की हठधर्मिता एवं तानाशाही राजनैतिक दृष्टिकोण के चलते चल रही हड़ताल समाप्त नहीं हो पा रही है।मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार न तो राजनैतिक हत्यायें रोक पा रही है और न ही जूनियर डाक्टरों की हड़ताल को समाप्त करा पा रही है जो लोकतंत्र के भविष्य में उचित नही कहा जा सकता है। 
भोलानाथ मिश्र


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