हिंसक राजनीति
लोकतंत्र में राजनीति का स्तर किस तरह से तेजी से गिरता जा रहा है उसका अनुमान चुनावी प्रचार के स्तर से ही नहीं बल्कि वोट मांगने के दौरान मतदाताओं द्वारा राजनैतिक नेताओं के साथ किए जा रहे व्यवहार से किया जा सकता है। वैसे राजनीति में हिंसा का कोई स्थान नहीं माना गया है इसके बावजूद राजनीत में हिंसा का प्रवेश काफी पहले हो चुका है जिसका अटूट सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी है।अबतक चुनाव प्रचार के दौरान राजनैतिक दलों के समर्थकों के बीच हिंसक घटनाएं होती थी लेकिन अब राजनेताओं के साथ होने लगी हैं। राजनीति में चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं द्वारा राजनेताओं को वोट के बदले थप्पड़ मारने की परंपरा इस लोकसभा चुनाव में शुरू हो गई है। लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण के अंतिम दिन कल दिल्ली में आम आम आदमी पार्टी के अगुआ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ हुई घटना भारतीय राजनीति के भविष्य की द्योतक एवं खतरे की घंटी मानी जा सकती है। कल हुई इस शर्मनाक घटना में आप नेता को एक साधारण मतदाता द्वारा प्रचार के दौरान वोट देने की जगह वोट देने के पहले ही एक थप्पड़ दे दिए गए। इस घटना के बाद वोट के रूप में थप्पड़ देने वाले युवक को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया गया है और पुलिस उससे देर रात से ही पूंछतांछ कर रही है और अब तक की जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक थप्पड़ मारने वाला युवक किसी पार्टी का शक के सदस्य अथवा पदाधिकारी नहीं है बल्कि वह साधारण मतदाता है जिसने अपनी नाराजगी का इजहार प्रचार के दौरान गुस्से में किया है। वैसे आप नेता पर हाथ उठाने की यह पहली घटना नहीं है बल्कि इसके पहले भी उनके ऊपर जूता व स्याही फेंकी जा चुकी है और वह राजनीतिक बदलते स्वरूप के परिचायक बनते जा रहे हैं। लोकतंत्र के इस महापर्व के दौरान हुई इस घटना की जितनी निंदा की जाए उतनी कम है लेकिन अब समय आ गया है कि राजनेताओं को भी सोचना होगा कि मतदाताओं के बीच उनकी स्थिति क्या बनती जा रही है। ऐसी घटनाएं इस लोकतांत्रिक देश की राजनीति के भविष्य के लिए कतई शूभ एवं उज्जवल नहीं कही जा सकती हैं। इस घटना से मतदाताओं के बदलते चुनावी मिजाज का अंदाजा भी लगाया जा सकता है साथ ही उसे मतदाताओं की जागरूकता नमूना भी कहा जा सकता है। राजनीति में चुनाव जीतने के लिए वायदे किये जाते हैं और घोषणा पत्र या संकल्प पत्र जारी करके जीतने के बाद उन्हें पूरा करने की कसमें खाकर मतदाताओं का कीमती वोट तो ले लिया जाता है लेकिन चुनाव जीतने के बाद उसे भुला दिया जाता है।कल हुयी थप्पड़बाजी की घटना मतदाताओं से चुनाव के दौरान किये गये वायदों के वायदा खिलाफी करने के प्रतिफल के रूप में शुरुआत मानी जा सकती है।इस घटना के बाद राजनैतिक गलियारों में तरह तरह की चर्चाएं शुरू हो गई है और इस पर राजनैतिक दल अपने अपने ढंग से प्रतिक्रिया दे रहे हैं जबकि घटना सबक लेने एवं सबक सिखाने वाली है।
भोलानाथ मिश्र
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